श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  3.31.47 
 
 
असौ रणान्त:स्थितिसंधिवालो
विदग्धरक्षोमृगहा नृसिंह:।
सुप्तस्त्वया बोधयितुं न शक्य:
शराङ्गपूर्णो निशितासिदंष्ट्र:॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  वे श्रीराम मनुष्य के रूप में एक सिंह हैं। युद्ध के मैदान में स्थित होना ही उनके अंगों के जोड़ और बाल हैं। वह सिंह चतुर राक्षसों जैसे मृगों का वध करने वाला है, बाणों से भरा हुआ है और तलवारें ही उसके नुकीले दाँत हैं। उस सोते हुए सिंह को तुम जगा नहीं सकते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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