श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  3.31.46 
 
 
विशुद्धवंशाभिजनाग्रहस्त-
तेजोमद: संस्थितदोर्विषाण:।
उदीक्षितुं रावण नेह युक्त:
स संयुगे राघवगन्धहस्ती॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण! रघुकुल के श्रीराम वह गंधयुत गजराज समान हैं, जिसकी गंध से ही गज-रूपी योद्धा दूर भाग खड़े होते हैं। विशुद्ध कुल में जन्म लेना ही उस श्रीराम नामक गजराज का सूंड-दंड है, प्रताप ही उनका मद है और सुडौल बाहें ही उनके दाँत हैं। युद्ध में उनपर दृष्टि डालना भी तुम्हारे लिए उचित नहीं, फिर युद्ध की बात तो और भी क्या है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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