श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  3.31.45 
 
 
कर्मणानेन केनासि कापथं प्रतिपादित:।
सुखसुप्तस्य ते राजन् प्रहृतं केन मूर्धनि॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘राजन्! किसने तुम्हें ऐसी खोटी सलाह देकर कुमार्गपर पहुँचाया है? किसने सुखपूर्वक सोते समय तुम्हारे मस्तकपर लात मारी है॥ ४५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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