श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.31.44 
 
 
प्रोत्साहयति यश्च त्वां स च शत्रुरसंशयम्।
आशीविषमुखाद् दंष्ट्रामुद्धर्तुं चेच्छति त्वया॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  निस्संदेह, जो व्यक्ति तुम्हें इस कार्य में प्रोत्साहित कर रहा है, वह तुम्हारा शत्रु है। वह चाहता है कि तुम अपने हाथों से विषधर सर्प के मुख से उसके दाँत उखाड़ लो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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