श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  3.31.42 
 
 
आख्याता केन वा सीता मित्ररूपेण शत्रुणा।
त्वया राक्षसशार्दूल को न नन्दति नन्दित:॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसों के श्रेष्ठ! मित्र के रूप में तुम्हारा वह कौन-सा शत्रु है जिसने सीता के अपहरण की सलाह दी? कौन-सा ऐसा पुरुष है, जो तुमसे सुख और सम्मान पाकर भी संतुष्ट नहीं है, और इसलिए तुम्हारी बुराई चाहता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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