श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.31.4 
 
 
केन भीमं जनस्थानं हतं मम परासुना।
को हि सर्वेषु लोकेषु गतिं नाधिगमिष्यति॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  उसने कहा - "कौन है जो मृत्यु के चंगुल में जाना चाहता है, जिसने मेरे भयानक निवास स्थान को नष्ट कर दिया है? कौन है वह साहसी व्यक्ति, जिसे पूरे विश्व में कहीं भी शरण नहीं मिलेगी?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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