श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.31.38 
 
 
कच्चित् सकुशलं राजँल्लोकानां राक्षसाधिप।
आशङ्के नाधिजाने त्वं यतस्तूर्णमुपागत:॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसराज! क्या आपकी प्रजा कुशलतापूर्वक है? आप इतनी जल्दी क्यों आये हैं, इससे मेरे मन में कुछ संदेह हुआ है। मुझे लगता है कि आपकी प्रजा अच्छी स्थिति में नहीं है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.