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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना
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श्लोक 35
श्लोक
3.31.35
स रथो राक्षसेन्द्रस्य नक्षत्रपथगो महान्।
चञ्चूर्यमाण: शुशुभे जलदे चन्द्रमा इव॥ ३५॥
अनुवाद
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नक्षत्रों के मार्ग पर चलता हुआ राक्षसराज का वह विशाल रथ बादलों की ओट में प्रकाशवान चन्द्रमा के समान शोभा पा रहा था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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