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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना
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श्लोक 5
श्लोक
3.30.5
नीचस्य क्षुद्रशीलस्य मिथ्यावृत्तस्य रक्षस:।
प्राणानपहरिष्यामि गरुत्मानमृतं यथा॥ ५॥
अनुवाद
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‘तू नीच, क्षुद्रस्वभावसे युक्त और मिथ्याचारी राक्षस है। मैं तेरे प्राणोंको उसी प्रकार हर लूँगा, जैसे गरुड़ने देवताओंके यहाँसे अमृतका अपहरण किया था॥ ५॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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