प्रसन्नता से भरे हुए उन महान ऋषि-मुनियों द्वारा सराहे जाने वाले, जिनके द्वारा राक्षसों के समुदाय पर विजय पाई गयी, उन प्राणप्रिय श्री राम जी को बार-बार हृदय से लगाकर उस समय जनक की पुत्री सीता को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनका मुख आनंद से खिल उठा।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रिंश: सर्ग:॥ ३०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३०॥