श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.30.41 
 
 
ततस्तु तं राक्षससङ्घमर्दनं
सम्पूज्यमानं मुदितैर्महात्मभि:।
पुन: परिष्वज्य मुदान्वितानना
बभूव हृष्टा जनकात्मजा तदा॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रसन्नता से भरे हुए उन महान ऋषि-मुनियों द्वारा सराहे जाने वाले, जिनके द्वारा राक्षसों के समुदाय पर विजय पाई गयी, उन प्राणप्रिय श्री राम जी को बार-बार हृदय से लगाकर उस समय जनक की पुत्री सीता को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनका मुख आनंद से खिल उठा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रिंश: सर्ग:॥ ३०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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