श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना  »  श्लोक 16-17
 
 
श्लोक  3.30.16-17 
 
 
एवमुक्त्वा ततो रामं संरुध्य भृकुटिं तत:।
स ददर्श महासालमविदूरे निशाचर:॥ १६॥
रणे प्रहरणस्यार्थे सर्वतो ह्यवलोकयन्।
स तमुत्पाटयामास संदष्टदशनच्छदम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार कहकर, उस निशाचर ने एक बार भगवान राम की ओर भौहें चढ़ाकर देखा। फिर, रणभूमि में उन पर प्रहार करने के लिए चारों ओर देखने लगा। इतने में ही उसे एक विशाल वृक्ष दिखाई दिया। खर ने अपने होठों को दाँतों से दबाकर उस वृक्ष को उखाड़ लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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