श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.30.14 
 
 
दृढं खल्ववलिप्तोऽसि भयेष्वपि च निर्भय:।
वाच्यावाच्यं ततो हि त्वं मृत्योर्वश्यो न बुध्यसे॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  अरे! निश्चय ही तुम बहुत अहंकारी हो, खतरे के समय में भी तुम निडर बने रहते हो। ऐसा लगता है कि तुम मृत्यु के वश में हो चुके हो, इसलिए तुम्हें यह भी पता नहीं है कि कब क्या कहना चाहिए और कब नहीं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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