श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 30: श्रीराम के व्यङ्ग करने पर खर का उनके ऊपर साल वृक्ष का प्रहार करना, श्रीराम का तेजस्वी बाण से खर को मार गिराना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.30.12 
 
 
नृशंसशील क्षुद्रात्मन् नित्यं ब्राह्मणकण्टक।
त्वत्कृते शङ्कितैरग्नौ मुनिभि: पात्यते हवि:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  निशाचर! तेरा स्वभाव क्रूर है और तेरा हृदय सदैव तुच्छ विचारों से भरा रहता है। तू ब्राह्मणों के लिए एक काँटे की तरह है। तेरे कारण ही मुनि लोग संशय में रहते हुए अग्नि में आहुतियाँ देते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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