हे राक्षसराज ! हाथियों, घोड़ों और रथों से भरी विशाल सेना के बीच में खड़े होकर (असंख्य राक्षसों के स्वामित्व का अभिमान लेकर) तूने जो सदैव क्रूरतापूर्ण कर्म किए हैं, वे सभी लोकों द्वारा निंदित हैं। ऐसा व्यक्ति जो सभी प्राणियों को तकलीफ पहुंचाता है, क्रूर है और पाप करता है, वह तीनों लोकों का ईश्वर हो, तब भी ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। जो व्यक्ति लोक-विरोधी कठोर कर्म करता है, उसे सभी लोग सामने आए हुए दुष्ट सांप की तरह मार डालते हैं।