श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 29: श्रीराम का खर को फटकारना तथा खर का भी उन्हें कठोर उत्तर देकर उनके ऊपर गदा का प्रहार करना और श्रीराम द्वारा उस गदा का खण्डन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.29.18 
 
 
प्राकृतास्त्वकृतात्मानो लोके क्षत्रियपांसना:।
निरर्थकं विकत्थन्ते यथा राम विकत्थसे॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  राम! जो क्षुद्र, जंगली, तथा क्षत्रिय कुल के कलंक होते हैं, वे ही संसार में अपनी बड़ाई के लिए व्यर्थ डींग हाँका करते हैं; जैसे इस समय तुम (अपने विषय में) बढ़-बढ़कर बातें बना रहे हो।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.