प्राकृतास्त्वकृतात्मानो लोके क्षत्रियपांसना:।
निरर्थकं विकत्थन्ते यथा राम विकत्थसे॥ १८॥
अनुवाद
राम! जो क्षुद्र, जंगली, तथा क्षत्रिय कुल के कलंक होते हैं, वे ही संसार में अपनी बड़ाई के लिए व्यर्थ डींग हाँका करते हैं; जैसे इस समय तुम (अपने विषय में) बढ़-बढ़कर बातें बना रहे हो।