श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 29: श्रीराम का खर को फटकारना तथा खर का भी उन्हें कठोर उत्तर देकर उनके ऊपर गदा का प्रहार करना और श्रीराम द्वारा उस गदा का खण्डन  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.29.10 
 
 
पापमाचरतां घोरं लोकस्याप्रियमिच्छताम्।
अहमासादितो राज्ञा प्राणान् हन्तुं निशाचर॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षस! पापकर्म में लगे तुम्हें प्राणदंड देने के लिए ही महाराज दशरथ ने मुझे वन में भेजा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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