श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 28: खर के साथ श्रीराम का घोर युद्ध  »  श्लोक 30-31
 
 
श्लोक  3.28.30-31 
 
 
त्रिभिस्त्रिवेणून् बलवान् द्वाभ्यामक्षं महाबल:।
द्वादशेन तु बाणेन खरस्य सशरं धनु:॥ ३०॥
छित्त्वा वज्रनिकाशेन राघव: प्रहसन्निव।
त्रयोदशेनेन्द्रसमो बिभेद समरे खरम्॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  इसके पश्चात् प्रबल बलशाली श्रीराम ने तीन बाणों से त्रिवेणु (जूए का आधार दंड) और दो बाणों से रथ के धुरों को तोड़ डाला। फिर, बारहवें बाण से खर के बाणों सहित धनुष के दो टुकड़े कर दिए। उसके बाद, इंद्र के समान तेजस्वी श्रीराघवेन्द्र ने हँसते हुए वज्र के समान तेरहवें बाण से समर भूमि में खर को घायल कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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