श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 27: त्रिशिरा का वध  »  श्लोक 18-19h
 
 
श्लोक  3.27.18-19h 
 
 
स धूमशोणितोद‍्गारी रामबाणाभिपीडित:॥ १८॥
न्यपतत् पतितै: पूर्वं समरस्थो निशाचर:।
 
 
अनुवाद
 
  समरांगण में खड़ा हुआ वह राक्षस श्रीराम जी के बाणों से पीड़ित होकर धुआँ और खून उगलते हुए पहले से ही गिरे हुए राक्षसों के सिरों के साथ धराशायी हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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