श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 27: त्रिशिरा का वध  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  3.27.14-15 
 
 
चतुर्भिस्तुरगानस्य शरै: संनतपर्वभि:॥ १४॥
न्यपातयत तेजस्वी चतुरस्तस्य वाजिन:।
अष्टभि: सायकै: सूतं रथोपस्थे न्यपातयत्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर पराक्रमी रघुनाथ श्री राम ने चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को मार गिराया जो झुके हुए सिरे वाले थे। इसके पश्चात् आठ तीरों से उसके सारथि को रथ के बैठने वाले स्थान पर ही सुला दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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