श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 27: त्रिशिरा का वध  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  3.27.12-13h 
 
 
अहो विक्रमशूरस्य राक्षसस्येदृशं बलम्।
पुष्पैरिव शरैर्योऽहं ललाटेऽस्मि परिक्षत:॥ १२॥
ममापि प्रतिगृह्णीष्व शरांश्चापगुणाच्च्युतान्।
 
 
अनुवाद
 
  ‘देखो! राक्षसों के शूरवीरों का पराक्रम दिखाने में बल ऐसा ही होता है, जो तुमने फूलों-जैसे बाणों द्वारा मेरे माथे पर प्रहार किया है। अब मेरे धनुष से छोड़े गए बाणों को भी ग्रहण करो’।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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