धरती पर त्रिनेत्रधारी भगवान शिव के समान तीनों अग्रगामी सैनिकों का वह समूह बहुत सारी शाखाओं वाले विशाल वृक्ष की तरह गिर पड़ा। इसके बाद श्रीरामचन्द्रजी ने कुपित होकर दूषण के साथी पांच हजार राक्षसों को पलक झपकते ही उतने ही बाणों से मारकर यमलोक पहुँचा दिया।