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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 14
श्लोक
3.26.14
भ्रष्टस्तस्य महाकाय: पपात रणमूर्धनि।
परिघश्छिन्नहस्तस्य शक्रध्वज इवाग्रत:॥ १४॥
अनुवाद
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रणभूमि में कटे हुए दोनों हाथों से छूटकर, दुशासन का विशाल काय इन्द्र ध्वज की भांति सामने गिर पड़ा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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