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श्लोक 38
श्लोक
3.25.38
तत: शरसहस्राणि निर्ययुश्चापमण्डलात्।
सर्वा दश दिशो बाणैरापूर्यन्त समागतै:॥ ३८॥
अनुवाद
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तब उनके चाप के घेरे से सहस्रों बाणों का उत्सर्जन होने लगा। उन बाणों से दसों दिशाएँ पूरी तरह से ढक गईं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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