श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 35-37
 
 
श्लोक  3.25.35-37 
 
 
ते समन्तादभिक्रुद्धा राघवं पुनरार्दयन्॥ ३५॥
तत: सर्वा दिशो दृष्ट्वा प्रदिशश्च समावृता:।
राक्षसै: सर्वत: प्राप्तै: शरवर्षाभिरावृत:॥ ३६॥
स कृत्वा भैरवं नादमस्त्रं परमभास्वरम्।
समयोजयद् गान्धर्वं राक्षसेषु महाबल:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  वे राक्षस चारों ओर से पुनः श्रीराम को सताने लगे और उन्हें क्रोधित कर दिया। तब श्रीराम ने देखा कि सभी दिशाएँ और उपदिशाएँ राक्षसों से घिरी हुई हैं और वे बाणों की वर्षा कर रहे हैं। तब महाबली श्रीराम ने भैरव-नाद करके उन राक्षसों पर अत्यंत तेजस्वी गान्धर्व नामक अस्त्र का प्रयोग किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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