तत्सैन्यं विविधैर्बाणैरर्दितं मर्मभेदिभि:।
न रामेण सुखं लेभे शुष्कं वनमिवाग्निना॥ २६॥
अनुवाद
रावण की वह राक्षस सेना, भगवान श्री राम द्वारा चलाये गए विभिन्न प्रकार के मर्मभेदी बाणों से पीड़ित हुई थी। उनकी पीड़ा ऐसी थी जैसे आग से जलते हुए सूखे वन को सुख-शांति नहीं मिलती है।