श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  3.25.23-24 
 
 
हयान् काञ्चनसंनाहान् रथयुक्तान् ससारथीन्।
गजांश्च सगजारोहान् सहयान् सादिनस्तदा॥ २३॥
चिच्छिदुर्बिभिदुश्चैव रामबाणा गुणच्युता:।
पदातीन् समरे हत्वा ह्यनयद् यमसादनम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रत्यञ्चा से छूटे हुए श्रीराम के बाणों ने उस समय सोने के साज-बाज और कवच से सजे हुए घोड़ों, सारथियों, हाथियों, हाथी सवारों, घोड़ों और घुड़सवारों को भी छिन्न-भिन्न कर डाला। इसी प्रकार श्रीराम ने समरभूमि में पैदल सैनिकों को भी मारकर यमलोक पहुँचा दिया। श्रीराम के बाणों ने युद्ध के मैदान में कहर ढा दिया। सोने के सामानों से सजे हुए घोड़ों वाले रथ, सारथी, हाथी, हाथी सवार, घोड़े और घुड़सवार सभी श्रीराम के बाणों का शिकार बन गए। यही नहीं, श्रीराम ने पैदल सैनिकों को भी नहीं छोड़ा और उन्हें भी यमलोक पहुँचा दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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