श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 20-21h
 
 
श्लोक  3.25.20-21h 
 
 
असंख्येयास्तु रामस्य सायकाश्चापमण्डलात्॥ २०॥
विनिष्पेतुरतीवोग्रा रक्ष:प्राणापहारिण:।
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचंद्र जी के चक्राकार धनुष से राक्षसों के प्राण लेने वाली असंख्य भयानक बाणों की वर्षा होने लगी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.