श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 18-19h
 
 
श्लोक  3.25.18-19h 
 
 
मुमोच लीलया कङ्कपत्रान् काञ्चनभूषणान्।
ते शरा: शत्रुसैन्येषु मुक्ता रामेण लीलया॥ १८॥
आददू रक्षसां प्राणान् पाशा: कालकृता इव।
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम ने युद्ध के मैदान में खेल-खेल में ही चील के परों से युक्त असंख्य स्वर्णाभूषित बाणों का प्रहार किया। जब रावण की सेना पर ये बाण लगे, तो वे कालपाश की तरह राक्षसों के प्राण लेने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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