स विद्ध: क्षतजादिग्ध: सर्वगात्रेषु राघव:॥ १४॥
बभूव राम: संध्याभ्रैर्दिवाकर इवावृत:।
अनुवाद
संध्या के बादलों से घिरे हुए सूर्यदेव के समान प्रभु श्रीरघुनाथजी के सारे अङ्गों में अस्त्र-शस्त्रों के आघात से घाव हो गया था। वे लहूलुहान हो रहे थे, अतः उस समय वे अत्यंत शोभायमान प्रतीत हो रहे थे।