श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  3.25.12-13h 
 
 
तानि मुक्तानि शस्त्राणि यातुधानै: स राघव:॥ १२॥
प्रतिजग्राह विशिखैर्नद्योघानिव सागर:।
 
 
अनुवाद
 
   श्री रघुनाथजी ने राक्षसों के छोड़े हुए उन अस्त्र और शस्त्रों का अपने बाणों से उसी प्रकार ग्रहण कर लिया, जैसे समुद्र नदियों के जल प्रवाह को अपने में समाहित कर लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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