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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना
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श्लोक 5-6
श्लोक
3.23.5-6
जनस्थानसमीपे च समाक्रम्य खरस्वना:।
विस्वरान् विविधान् नादान् मांसादा मृगपक्षिण:॥ ५॥
व्याजह्रुरभिदीप्तायां दिशि वै भैरवस्वनम्।
अशिवं यातुधानानां शिवा घोरा महास्वना:॥ ६॥
अनुवाद
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जनस्थान के पास ही खर-स्वर वाले मांसभक्षी पशु और पक्षी इकट्ठा होकर अनेक प्रकार की विकृत ध्वनियाँ निकालने लगे। सूर्य की प्रभा से प्रकाशित दिशाओं में मुँह से आग उगलने वाले भयंकर गीदड़ राक्षसों ने अमंगलकारी भैरवनाद किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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