श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.23.4 
 
 
ततो ध्वजमुपागम्य हेमदण्डं समुच्छ्रितम्।
समाक्रम्य महाकायस्तस्थौ गृध्र: सुदारुण:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् खर के रथ की ऊंची और सोने के दंड वाली ध्वजा पर एक विशालकाय गीध आकर बैठ गया, जो देखने में बहुत ही खौफ़नाक था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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