श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना  »  श्लोक 24-25h
 
 
श्लोक  3.23.24-25h 
 
 
देवराजमपि क्रुद्धो मत्तैरावतगामिनम्॥ २४॥
वज्रहस्तं रणे हन्यां किं पुनस्तौ च मानवौ।
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, मैं उस मतवाले ऐरावत पर चलने वाले इन्द्र को भी मार सकता हूँ जो वज्र धारण करते हैं, जब वे क्रुद्ध हों और रणभूमि में हों। फिर, उन दो मनुष्यों की तो बात ही क्या है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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