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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना
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श्लोक 21-22h
श्लोक
3.23.21-22h
मृत्युं मरणधर्मेण संक्रुद्धो योजयाम्यहम्।
राघवं तं बलोत्सिक्तं भ्रातरं चापि लक्ष्मणम्॥ २१॥
अहत्वा सायकैस्तीक्ष्णैर्नोपावर्तितुमुत्सहे।
अनुवाद
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‘यदि कुपित हो जाऊँ तो मृत्युको भी मौतके मुखमें डाल सकता हूँ। आज बलका घमंड रखनेवाले राम और उसके भाई लक्ष्मणको तीखे बाणोंसे मारे बिना मैं पीछे नहीं लौट सकता॥ २१ १/२॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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