श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना  »  श्लोक 18-19h
 
 
श्लोक  3.23.18-19h 
 
 
ललाटे च रुजो जाता न च मोहान्न्यवर्तत।
तान् समीक्ष्य महोत्पातानुत्थितान् रोमहर्षणान्॥ १८॥
अब्रवीद् राक्षसान् सर्वान् प्रहसन् स खरस्तदा।
 
 
अनुवाद
 
   उसके सिर में दर्द उठने लगा, फिर भी वह आसक्ति के कारण युद्ध से पीछे नहीं हटा। उस समय प्रकट हुए उन बड़े-बड़े, रोमांचकारी विपत्तियों को देखकर खर जोर-जोर से हँसने लगा और समस्त राक्षसों से बोला-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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