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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 23: भयंकर उत्पातों को देखकर भी खर का उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस सेना का श्रीराम के आश्रम के समीप पहुँचना
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श्लोक 16-17
श्लोक
3.23.16-17
प्रचचाल मही चापि सशैलवनकानना।
खरस्य च रथस्थस्य नर्दमानस्य धीमत:॥ १६॥
प्राकम्पत भुज: सव्य: स्वरश्चास्यावसज्जत।
सास्रा सम्पद्यते दृष्टि: पश्यमानस्य सर्वत:॥ १७॥
अनुवाद
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पर्वत, वन और जंगलों समेत पूरी पृथ्वी हिल उठी। बुद्धिमान खर अपने रथ पर सवार होकर गर्जना कर रहा था। उसी समय अचानक उसकी बायीं भुजा कांपने लगी। उसका स्वर रुँध गया और इधर-उधर देखने पर उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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