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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान
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श्लोक 5
श्लोक
3.22.5
परश्वधहतस्याद्य मन्दप्राणस्य भूतले।
रामस्य रुधिरं रक्तमुष्णं पास्यसि राक्षसि॥ ५॥
अनुवाद
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राक्षसी! आज मेरे फरसे के प्रहार से धरती पर गिरकर राम मृत्यु के कगार पर पहुँच चुके हैं। अभी उनका रक्त अभी तक ठंडा भी नहीं हुआ है। तभी तुम उसका स्वाद चखोगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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