श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.22.24 
 
 
प्रवृद्धमन्युस्तु खर: खरस्वरो
रिपोर्वधार्थं त्वरितो यथान्तक:।
अचूचुदत् सारथिमुन्नदन् पुन-
र्महाबलो मेघ इवाश्मवर्षवान्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  तब खर का क्रोध बढ़ गया था। उसकी आवाज़ भी कठोर हो गई थी। वह दुश्मन को मारने के लिए बेताब होकर यमराज की तरह भयानक लग रहा था। जैसे ओलों की वर्षा करने वाला बादल जोर से गरजता है, उसी तरह शक्तिशाली खर ने जोर से दहाड़ते हुए एक बार फिर सारथि को रथ चलाने के लिए उकसाया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्वाविंश: सर्ग: ॥ २ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बाईसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ २ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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