तवापमानप्रभव: क्रोधोऽयमतुलो मम।
न शक्यते धारयितुं लवणाम्भ इवोल्बणम्॥ २॥
अनुवाद
"हे बहना! तेरे अपमान से मेरे मन में भयंकर क्रोध की अग्नि प्रज्जवलित हुई है। इस क्रोध को धारण करना या दबाना उतना ही असंभव है, जितना बढ़ती हुई पूर्णिमा के समुद्र के लवण-युक्त पानी को थामना (अथवा यह उतना ही असहनीय है, जितना घाव पर नमक छिड़कना)।