श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.22.2 
 
 
तवापमानप्रभव: क्रोधोऽयमतुलो मम।
न शक्यते धारयितुं लवणाम्भ इवोल्बणम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  "हे बहना! तेरे अपमान से मेरे मन में भयंकर क्रोध की अग्नि प्रज्जवलित हुई है। इस क्रोध को धारण करना या दबाना उतना ही असंभव है, जितना बढ़ती हुई पूर्णिमा के समुद्र के लवण-युक्त पानी को थामना (अथवा यह उतना ही असहनीय है, जितना घाव पर नमक छिड़कना)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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