श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान  »  श्लोक 18-20
 
 
श्लोक  3.22.18-20 
 
 
मुद‍्गरैः पट्टिशै: शूलै: सुतीक्ष्णैश्च परश्वधै:।
खड्गैश्चक्रैश्च हस्तस्थैर्भ्राजमानै: सतोमरै:॥ १८॥
शक्तिभि: परिघैर्घोरैरतिमात्रैश्च कार्मुकै:।
गदासिमुसलैर्वज्रैर्गृहीतैर्भीमदर्शनै:॥ १९॥
राक्षसानां सुघोराणां सहस्राणि चतुर्दश।
निर्यातानि जनस्थानात् खरचित्तानुवर्तिनाम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  सेनापती के हाथ में गदा, फरसा, त्रिशूल, नुकीली तलवार, चक्र, और भाला चमक उठा। भाला, भयंकर लोहे का पहिया, विशाल धनुष, गदा, तलवार, कील तथा वज्र (आठ कोणों वाला विशेष हथियार) राक्षसों के हाथ में आकर बहुत डरावने लग रहे थे। इन हथियारों से लैस और खर की इच्छा के अनुसार चलने वाले चौदह हजार भयंकर राक्षस लोग आबादी से युद्ध के लिए निकल पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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