श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 21: शूर्पणखा का खर के पास आकर उन राक्षसों के वध का समाचार बताना और राम का भय दिखाकर उसे युद्ध के लिये उत्तेजित करना  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.21.21-22 
 
 
एवं विलप्य बहुशो राक्षसी प्रदरोदरी॥ २१॥
भ्रातु: समीपे शोकार्ता नष्टसंज्ञा बभूव ह।
कराभ्यामुदरं हत्वा रुरोद भृशदु:खिता॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार अत्यधिक विलाप करके, गुफा के समान गहरे पेट वाली वह राक्षसी शोक से व्याकुल हो गई। वह अपने भाई के पास मूर्छित-सी हो गई और अत्यधिक दु:खी होकर दोनों हाथों से अपने पेट को पीटते हुए फूट-फूटकर रोने लगी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकविंश: सर्ग:॥ २१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें इक्कीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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