श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 21: शूर्पणखा का खर के पास आकर उन राक्षसों के वध का समाचार बताना और राम का भय दिखाकर उसे युद्ध के लिये उत्तेजित करना  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  3.21.17-18 
 
 
शूरमानी न शूरस्त्वं मिथ्यारोपितविक्रम:॥ १७॥
अपयाहि जनस्थानात् त्वरित: सहबान्धव:।
जहि त्वं समरे मूढान्यथा तु कुलपांसन॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘तुम अपनेको शूरवीर मानते हो, किंतु तुममें शौर्य है ही नहीं। तुमने झूठे ही अपने-आपमें पराक्रमका आरोप कर लिया है। मूढ़! तुम समराङ्गणमें उन दोनोंको मार डालो अन्यथा अपने कुलमें कलङ्क लगाकर भाई-बन्धुओंके साथ तुरंत ही इस जनस्थानसे भाग जाओ॥ १७-१८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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