श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 20: श्रीराम द्वारा खर के भेजे हुए चौदह राक्षसों का वध  »  श्लोक 18-20h
 
 
श्लोक  3.20.18-20h 
 
 
तत: पश्चान्महातेजा नाराचान् सूर्यसंनिभान्॥ १८॥
जग्राह परमक्रुद्धश्चतुर्दश शिलाशितान्।
गृहीत्वा धनुरायम्य लक्ष्यानुद्दिश्य राक्षसान्॥ १९॥
मुमोच राघवो बाणान् वज्रानिव शतक्रतु:।
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर अत्यधिक क्रोधित हुए महातेजस्वी रघुनाथजी ने शान पर चढ़ाकर तेज किये गये सूर्य के समान तेजस्वी चौदह नाराच बाण अपने हाथ में लिये। फिर उन्होंने धनुष लेकर उस पर उन बाणों को रखा और कान तक खींचकर राक्षसों को लक्ष्य करके बाण छोड़ दिए। ऐसा लगा मानो इन्द्र देव ने स्वयं वज्र से प्रहार किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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