तदनंतर अत्यधिक क्रोधित हुए महातेजस्वी रघुनाथजी ने शान पर चढ़ाकर तेज किये गये सूर्य के समान तेजस्वी चौदह नाराच बाण अपने हाथ में लिये। फिर उन्होंने धनुष लेकर उस पर उन बाणों को रखा और कान तक खींचकर राक्षसों को लक्ष्य करके बाण छोड़ दिए। ऐसा लगा मानो इन्द्र देव ने स्वयं वज्र से प्रहार किया था।