श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.2.6 
 
 
वसानं चर्म वैयाघ्रं वसार्द्रं रुधिरोक्षितम्।
त्रासनं सर्वभूतानां व्यादितास्यमिवान्तकम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  उसने रक्तरंजित एवं वसा से भीगा बाघ का चर्म पहन रखा था। समस्त प्राणियों को त्रास देने वाला वह दानव यमराज के समान मुँह फाड़कर खड़ा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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