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सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण
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श्लोक 22
श्लोक
3.2.22
इति ब्रुवति काकुत्स्थे बाष्पशोकपरिप्लुत:।
अब्रवील्लक्ष्मण: क्रुद्धो रुद्धो नाग इव श्वसन्॥ २२॥
अनुवाद
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अतः भगवान रामचंद्र जी के इस प्रकार कहने पर शोक के आँसू बहाते हुए लक्ष्मण कुपित होकर मंत्र से अवरुद्ध हुए सर्प की भाँति फुफकारते हुए बोले।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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