श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.2.21 
 
 
परस्पर्शात् तु वैदेह्या न दु:खतरमस्ति मे।
पितुर्विनाशात् सौमित्रे स्वराज्य हरणात् तथा॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  विदेह नन्दिनी को यदि कोई दूसरा छू ले तो मेरे लिए इससे अधिक दुखदाई और कोई बात नहीं है। हे सुमित्रा नंदन! पिता की मृत्यु और अपने राज्य के अपहरण से भी मुझे उतना कष्ट नहीं हुआ था, जितना अब हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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