श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण  »  श्लोक 2-3
 
 
श्लोक  3.2.2-3 
 
 
नानामृगगणाकीर्णमृक्षशार्दूलसेवितम्।
ध्वस्तवृक्षलतागुल्मं दुर्दर्शसलिलाशयम्॥ २॥
निष्कूजमानशकुनिं झिल्लिकागणनादितम्।
लक्ष्मणानुचरो रामो वनमध्यं ददर्श ह॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  जाते-जाते लक्ष्मण के संग श्री राम ने वन के बीचो बीच एक ऐसे स्थान को देखा, जो नाना प्रकार के मृगों से भरा था। वहाँ अनेक भालू और बाघ निवास करते थे। वहाँ के पेड़, लता और झाड़ियाँ टूट-फूट कर नष्ट हो गई थीं। उस वनप्रदेश में किसी तालाब या नदी का दिखाई देना कठिन था। वहाँ के पक्षी वहीं चहक रहे थे। झींगुरों की आवाज गूंज रही थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.