श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.2.17 
 
 
पश्य सौम्य नरेन्द्रस्य जनकस्यात्मसम्भवाम्।
मम भार्यां शुभाचारां विराधाङ्के प्रवेशिताम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो प्रिय, राजा जनक की पुत्री और मेरी सती-साध्वी पत्नी सीता विराध के आलिंगन में ज़बरदस्ती चली गयी हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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