वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण
»
श्लोक 14-15
श्लोक
3.2.14-15
तस्यैवं ब्रुवतो दुष्टं विराधस्य दुरात्मन:॥ १४॥
श्रुत्वा सगर्वितं वाक्यं सम्भ्रान्ता जनकात्मजा।
सीता प्रवेपितोद्वेगात् प्रवाते कदली यथा॥ १५॥
अनुवाद
play_arrowpause
तब उस दुष्ट और घमंडी विराध की ये दुष्टता और घमंड से भरी बातें सुनकर जनक की पुत्री सीता घबरा गयीं और जैसे तेज हवा चलने पर केले का वृक्ष जोर-जोर से हिलने लगता है, उसी प्रकार वे उद्वेग के कारण थरथर काँपने लगीं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.