श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण  »  श्लोक 10-11h
 
 
श्लोक  3.2.10-11h 
 
 
अङ्केनादाय वैदेहीमपक्रम्य तदाब्रवीत्।
युवां जटाचीरधरौ सभार्यौ क्षीणजीवितौ॥ १०॥
प्रविष्टौ दण्डकारण्यं शरचापासिपाणिनौ।
 
 
अनुवाद
 
  उसने विदेह की राजकुमारी सीता को गोद में लिया और कुछ दूर चलकर खड़ा हो गया। फिर उसने दोनों भाइयों से कहा, "तुम दोनों जटाओं और वस्त्रों को पहनकर भी एक महिला के साथ रहते हो और हाथ में धनुष-बाण और तलवार लेकर दंडकवन में प्रवेश कर गए हो। इससे ऐसा लगता है कि तुम्हारा जीवन क्षीण हो चला है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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